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मेरा घर मेरे बच्चें

नमन मंच
मेरे जज़्बात,

मेरा घर मेरे बच्चें 

उम्र का क्या महज़ गिनती मात्र ।
हिल मिल संग बैठे वक्त कुछ साथ बिताए ।।
कट जाए यूं ही हँसते हँसते ज़िंदगी ।
गमों का क्या महज़ एक हवा ।।
आज़ द्वार है कल नहीं हाथ तेरे तेरी खुशी ।
मेरा घर मेरे बच्चें इन्हीं के लिए तो की जीवन सारी भाग दौड़ ।।
इनकी खुशी को पहले रखा इनसे ही दुनियां मेरी सारी ।
मुस्करा थोड़ा ले पल को 
चुरा तू ले ।।
जितनी कटनी थी कट गई ।
खुब दौड़ ये होड़ कमाने की लगाई ।।
ये पल थमने का पड़ाव खुद को खोजने का ।
जीवन के हर पहलू को परखने का ।।
निज का ये वक्त चुरा ले दामन तेरे तेरी खुशी ।।
क्यों ढूंढता यहां वहां ।
अपना घर अपने बच्चें 
बस यही यही तो मेरा सारा जहां ।।
इन्हीं के साथ हँस बोल बिता ले जितनी है ज़िंदगी ।

वर्षा उपाध्याय,खंडवा.

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7 Comments

बेहतरीन

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Reyaan

28-Dec-2023 08:36 PM

V nice

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Shnaya

28-Dec-2023 07:52 PM

Nice one

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