विरह
विरह (चौपाई)
नहीं सहा जाता वियोग है।
काला ज्वर यह मनोरोग है ।।
विरही कैसे दुःख सह पाये?
नहीं सूझता किधर को जाये??
विरह काल अति दुःखदायी है।
दुःख की बाढ़ चढ़ी आयी है।।
सूख रहा सारा तन-मन है।
दरक रहा सारा यौवन है ।।
मन में ग्लानि बुद्धि व्याकुल है ।
रक्त सूखता अति आकुल है।।
टूट गयी खुशियों की माला।
जीवन लगता विष का प्याला।।
विरह- वियोग बहुत तड़पाता।
बहुत विषैला सर्प सताता।।
छू छू कर के भय दिखलाता।
अपना ध्वज नियमित फहराता।।
जीवन में है घोर निराशा।
दिखती नहीं पास में आशा।।
विरह-अग्नि में सब जल जाता।
विरही को कुछ नहीं सुहाता।।
जाड़ा देता घोर तपिश है।
कभी न दिखता कहीं कशिश है।।
अंधकारमय सारा जीवन।
उजड़ा विखरा सूना उपवन।।
तप्त हृदय में ज्वाला-मुख है।
नख से शिख तक दुःख ही दुःख है।।
बहुत कठिन वियोग को सहना।
अच्छा होगा प्राण छोड़ना।।
Sachin dev
14-Dec-2022 03:22 PM
Superb
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