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बुलावा




बुलावा   (चौपाई ग़ज़ल)


प्रियतम ने है आज बुलाया।

प्रिय बोली का रसिक बनाया।।


कैसे मना करूँ मैं उसको?

जिसने रस का पान कराया।।


मना करूँ तो मैं पापी हूँ।

नहीं बनूँगा कभी पराय।।


प्रियतम मेरा अति भोला है।

मन से मुझको गले लगाया।।


भावुकता की प्रिय प्रतिमा वह।

दिल में मधुरिम भाव जगाया।।


घूम रहा था मैं वन-वन में।

प्रेम पंथ उसने दिखलाया।।


कैसे भूलूँ उस मोहक को।

जिसने उर में चमन खिलाया।।


गुणगायन मैं नित्य करूँगा।

जिसने पावन धर्म निभाया।।


वही सिर्फ मेरा जीवन है।

जिसने मुझसे नेह लगाया।।


वही मनोहर मुरलीवाला।

वृंदावन में रास रचाया।।


कैसे छोड़ूँ उस प्रियतम को?

मेरी खातिर जग में आया।।


वही एक  मेरा साथी है।

जिसने अपना हाथ थमाया।।


जाना है बस पास उसी के।

जिस प्रियतम ने आज बुलाया।।


जाना मुझको बहुत जरूरी।

जिसने प्रेम सुधा बरसाया।।





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2 Comments

Varsha_Upadhyay

08-Dec-2022 08:31 PM

बहुत खूब

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Sachin dev

08-Dec-2022 05:54 PM

Amazing

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