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चाह




*लेखनी काव्य प्रतियोगिता*
*29 मई,2023*
*शीर्षक:डॉ0 रामबली मिश्र के दोहे*

बहुत अधिक की चाह का, कभी न हो परवाह।
जो भी आया हाथ में,कहो उसी को वाह।।

जहां नहीं संतोष है,उसे दरिन्दा जान।
ज्यादा भी थोड़ा लगे,है दरिद्र इंसान।।

मन से मनुज गरीब है,भले बने धनवान।
तुष्ट सुसज्जित हृदय ही,सहज रत्न की खान।।

कभी कृपण के अन्न का,नहीं लगाओ भोग।
विष समान उस भोज से,पैदा होते रोग।।

 सादा भोजन संत का,लगता दिव्य प्रसाद।
दुष्टों का पकवान भी,देता दुख अवसाद।।

साधारण सामान्य की, कुटिया में आनंद।
शीश महल से दूर अति,सदा  सच्चिदानंद।।

 मनसा वाचा कर्म से,जो है अति संतुष्ट।
उस मानव को जानिए,महा संत प्रिय पुष्ट।।

उसको योगी जानिए,जिसे लोक वैराग।
बहुत अधिक की चाह से,मुक्त सहज मन त्याग।।

मानव का कल्याण ही,उसका मौलिक ध्येय।
कार्तिकेय के भाव से,ओतप्रोत मधु गेय।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।




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5 Comments

Abhinav ji

30-May-2023 08:52 AM

Very nice 👍

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Reena yadav

29-May-2023 03:24 PM

👍👍

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Pranali shrivastava

29-May-2023 02:49 PM

👌👏🙏🏻

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