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खुद्दारी

नमन मंच
मेरी लेखनी, 


             खुद्दारी


इंसान का अपना एक विचार होता। 
वसूल उसके खुद के निज के होते।। 
वसूल के आगे वह कुछ नही रखता। 
उसी मैं उसकी खुद्दारी होती।। 
जीता भी वह वसूल के संग खुद्दारी से।
खुद्दारी उसकी पहले बाद जीवन।। 
खुद्दार इंसान भूखे भूख मर जाता। 
फ़ाके कर लेगा हाथ किसी के आगे न फेलाता।। 
जितनी होती चादर उतने ही पैर फेलाता। 
दिखावा उसे बिल्कुल पसंद नही होता।। 
खुद्दारी जो जाए गिर आँख उपर नही उठाता। 
मारे शर्म के पानी पानी हो जाता।। 
मरे समान उसका जीवन हो जाता। 



वर्षा उपाध्याय
खंडवा, एम. पी.

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2 Comments

बहुत अच्छे 👌👌👏👏

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Sachin dev

21-Mar-2023 10:26 AM

Nice

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