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कुंडली




कुंडली


समता जीवन मूल्य का,जो करता सम्मान।

वही अलौकिक दिव्य मन, रचता सुखद विधान।।

कहें मिसिर कविराय, रखो सबके प्रति ममता।

कर समाज का मान, मनुज बन लाओ समता।।


समता समतल भूमि सम, भेदभाव से मुक्त।

यही स्वर्ग सोपान है, दिखता जग संयुक्त।।

कहें मिसिर कविराय, दूब पत्थर पर जमता।

ऊसर को हरियार, सदा करती है समता।।


समता में विश्वास का, फल अति मीठा होत।

समतामूलक भाव ही, सभ्य लोक का स्रोत।।

कहें मिसिर कविराय, करो स्थापित मानवता।

बनो सभ्य इंसान, लगे मनमोहक समता।।


समता का पालन करो, बन संवेदनशील।

आर-पार इस हृदय के, बसें साधु प्रिय शील।।

कहें मिसिर कविराय, वही तरुवर सा जमता।

शीतल छाया देत,प्रेमिका जिसकी समता।।


समता को ही पूजता, कोमल मृदुल स्वभाव।

संतों जैसा विचरता, धोता सबके घाव।।

कहें मिसिर कविराय, इत्र सा वही गमकता।

जिसे मनुज से प्यार,और उर में है समता।।




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1 Comments

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 12:13 PM

Nice

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