सावित्री
नमन मंच
मेरी लेखनी,
सावित्री
पतिव्रता नारी भारत की वो
महान,
मानती थी पति को वो भगवान
गृहस्थी चल रही थी ,
पति सेवा मै थी दिन रात लीन
काल के आगे थी मजबूर
उसका था विधान,
पति सत्यवान नही निभायेंगे
सात जन्म साथ,
बात से थी अंजान सावित्री
नारी वो लगी रहती काज बस एक
पति परमेश्वर की सेवा और नही कोई दुजा होता उसको काज,
आया दिन वह भी जो था निश्चित
यम आये हरने सत्यावान के प्राण,
निकाले देह से प्राण
सत्यवान हुआ निश्चेत
सावित्री हुई सचेत ,
सत् था उसमे नारी वो महान
चेत वह गई ज्ञात उसे हो गया
यमराज हरे परमेश्वर के प्राण
अटल विश्वास की मूरत थी वो
रास्ता रोके हुई खड़ी,
काहे हारते पति परमेश्वर के प्राण
संग मुझको भी ले जाओ,
यम संग चलती रही रुकी नही वह
पाताल लोक तक डिगी नही अपने कर्म से,
करती बारम्बार विनती
पति परमेश्वर को संग यम के जाने न दूँगी ,
जीवित सत्यवान को संग घर अपने ले कर जाँऊगी,
विनती सुन बार बार हुए यम भी परेशान,
यम हारे पतिव्रता के आगे
दिया वर जीवित वरदान मै,
भारत भर सुहागन मानती
सुहाग पर्व
लबि आयु पति की हो
रहे सदा सुहागन
आस्था विश्वास गर जो हो अटल क्या कुछ नही असंभव,
नामुमकीं को भी कर दे मुमकीन l
वर्षा उपाध्याय
खंडवा, एम. पी.
Renu
24-Jan-2023 02:59 PM
👍👍🌺
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madhura
24-Jan-2023 11:06 AM
nice poem
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Mahendra Bhatt
24-Jan-2023 09:59 AM
शानदार प्रस्तुति 👌
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