चौपई
चौपई
करो सदा मानव से प्रीति।
दर्द भगाओ यही सुनीति।
करते रह मानव कल्याण।
भरो देह में सबके प्राण।।
नहीं नीच से कर संवाद।
राह छोड़ मत करो विवाद।।
कभी न दुष्टों का मुँह देख।
सिद्ध संत पर लिखो सुलेख।।
नहीं पतित को करो समर्थ।
भस्मासुर कर देत अनर्थ ।।
नहीं क्रूर का कर सम्मान।
क्रूर ग्रहों का हो अपमान।।
कभी स्वार्थ को मत संपोष।
परमारथ का हो उदघोष ।।
धरती पर हो परहितवाद।
दुष्कृत्यों का नित प्रतिवाद।।
देवलोक का हो विस्तार।
सुन्दर मानव का संचार।।
सात्विक भावों का भण्डार।
तम-गुण का हो बंटाधार।।
सच्चाई का खेला खेल।
कभी न लुच्चों से कर मेल।।
कर नैतिकता पर विश्वास।
पूरी कर दुखियों की आस।।
परम तपस्वी रचनाकार।
से बनता उत्तम संसार।।
निर्मल मन के भाव उकेर।
सत्कर्मों की माला फेर।।
जो लिखता है पावन लेख।
वही खींचता सच्ची रेख।।
जिसके उत्तम साफ विचार।
वही रचयिता दिव्याकार।।
पर निंदा से कर परहेज।
मानव वंदन सदा दहेज।।
गंदे मन को नियमित मार।
प्राणि मात्र से कर नित प्यार।।