सत्कर्म
सत्कर्म (दोहे)
सपने में सत्कर्म में, सदा रहो लवलीन।
सदा जागरण काल हो, संरक्षित हो दीन।।
करता मानव का भला,जो वह प्रिय इंसान।
गन्दा मानव हो नहीं, सकता कभी सुजान।।
सुंदर कर्मों को सदा, मिलता है सम्मान।
जग की शोभा जो बना, उस की ही पहचान।।
जिसने त्यागा आप को, दिया विश्व को दान।
खुश होते उस मनुज से, आजीवन भगवान।।
शुभ कर्मों की लेखनी, से रचना संसार।
जग के प्रति अनुराग से ,जोड़ो सारे तार।।
शांतिदूत के स्वप्न से, रच सुगठित यह लोक।
दिख जाये संसार में,मानव दिव्य अशोक।।
सत्कर्मों की साधना, करना बारंबार।
सत्कर्मों के अन्न को, खाये यह संसार।।
सात्विकता की दौड़ में, सब से आगे भाग।
मोहक प्रतियोगी बनो, अहंकार को त्याग।।
अनुशासित जीवन रहे, संयम से हो काम।
मानव मन में चमकता, दिखे देव शिव धाम।।
अर्जित कर सत्कर्म से, पुण्य रत्न भण्डार ।
सत्संगति के मंच का, करते रहो प्रसार।।
Haaya meer
30-Dec-2022 06:44 PM
👌👌
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Sachin dev
30-Dec-2022 04:08 PM
Well done
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Abhilasha deshpande
28-Dec-2022 03:15 PM
बेहतरीन
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