लाइब्रेरी में जोड़ें

दरिद्रता




दरिद्रता   (दोहे)


जो दरिद्र वह अति दुःखी, दीन-हीन अति छीन।

तड़पत है वह इस कदर, जैसे जल बिन मीन।।


तन -मन -धन से हीन नर, को दरिद्र सम जान।

है दरिद्र की जिंदगी, सुनसान मरु खान।।


है दरिद्र की जिंदगी, बहुत बड़ा अभिशाप।

जन्म-जन्म के पाप का, यह दूषित संताप।।


अगर संपदा चाहिये, कर संतों का साथ।

सन्त मिलन अरु हरि कृपा, का हो सिर पर हाथ।।


जिस के मन में तुच्छता,वह दरिद्र का पेड़।

है समाज में इस तरह, जिमि वृक्षों में रेड़ ।।


वैचारिक दारिद्र्य का, मत पूछो कुछ हाल।

धन के चक्कर में सदा, रहता यह बेहाल।।


धन को जीवन समझ कर, जो रहता बेचैन।

वह दरिद्र मतिमन्द अति, चैन नहीं दिन-रैन।।

   7
1 Comments

Varsha_Upadhyay

18-Dec-2022 01:59 PM

बहुत सुंदर

Reply