लाइब्रेरी में जोड़ें

प्रायश्चित




प्रायश्चित       (दोहे)


हो जाये यदि पाप तो, करना पश्चाताप।

पाप मुक्ति का पंथ है, केवल प्रभु का जाप।।


दूषित कर्मों का करो, तुम निश्चित अहसास।

संशोधन के हेतु नित, करते रहो प्रयास।।


जानबूझ कर मत करो, कोई गन्दा काम।

हो जाये गलती अगर,भजो राम का नाम।।


माफी माँगो ईश से,पछतावा कर रोज।

गंगा जल से स्नान कर, दो ब्राह्मण को भोज।।


खुद को देना दण्ड ही, पश्चाताप विशेष।

दुःखमय मन से प्रकट कर, खुद अपने पर रोष।।


विकृत कर्मों का करो, नित नियमित उपचार।

गन्दे मन के भाव का, करते रहो सुधार।।




   6
1 Comments

Sachin dev

15-Dec-2022 05:36 PM

Nice 👌

Reply