Mahendra Bhatt

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अम्बर




विषय:-- स्वैच्छिक

अंबर में..
रजत-सितारों जड़े,
श्यामल - तिमिर - कपाट,
मेंहदी रचे हाथों ने,
निश्शब्द खोले..
पंछी बन बोले..
लो! प्रभात हो गया.!

प्राची की देहरी बैठ,
अपने युगल चरणों पर,
लगाती महावर,
ऊषा..
नभ के गालों मलती है रोली,
लो! प्रभात हो गया..!

सूरज के रथ से उतर,
किरणें,
नदी में कूद,
केश खोल नहाने लगी,
नदी के जल को,
सुनहरी बनाने लगी....
लो! प्रभात हो गया..!

        **महेन्द्र भट्ट
(कवि -लेखक -व्यंग्यकार)
         ग्वालियर

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7 Comments

Pratikhya Priyadarshini

24-Sep-2022 12:47 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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Raziya bano

24-Sep-2022 08:52 AM

Nice

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Wahhhh wahhhh Bahut hi उम्दा सृजन

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