Mahendra Bhatt

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मुक्तता



मुक्तक--
बमुश्किल मुस्कान की कली खिली है!
ये जिन्दगी तो सिर्फ तुम्हीं से मिली है!
छोड़ना नहीं हाथ बीच राह में मीत मेरे,
इन आंखों में जीने की आरजू पली है!
   


मुक्तक--
बड़ी चर्चा तुम्हारी,आसमान से उतरी है!
दिल के आंगन में सोंधी खुशबू बिखरी है!
एक मुस्कुराहट से दिल खिल जाता है,
तनहाई  के आलम में चांदनी सी निखरी है!
    


दोहा--
कांटों पर चल कर मिला, फूलों वाला साथ।
बीच भंवर मत छोड़ना, पकड़े रहना हाथ।।
       **महेन्द्र भट्ट
 ( कवि लेखक व्यंग्यकार)

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2 Comments

Swati chourasia

28-Mar-2022 06:48 PM

बहुत ही सुंदर रचना 👌

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Gunjan Kamal

27-Mar-2022 10:28 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻

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