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ज़न मनहरण चौपाई

*ज़न मनहरण चौपाई*

कहत सुनत सुख दुख मन चलता।
चुन चुन इक इक हरदम कहता।
पचत वचन नहिं बढ़ बढ़ बकता।
भन भन भन भन भन भन भगता।

मगन सतत मन चलत फिरत है।
चढ़त गगन पर उड़त गिरत है।
लखत घुमत हर तरफ सहज है।
मनमथ मनसिज़ बनत दिखत है।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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6 Comments

Mohammed urooj khan

30-Jan-2024 11:05 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Milind salve

28-Jan-2024 04:35 PM

Nice one

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Madhumita

28-Jan-2024 03:50 PM

V nice

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