लेखनी प्रतियोगिता -06-Jun-2023 एक लड़की थी
शीर्षक = एक लड़की थी
महीने भर से अदालत के चककर काटने और तारीख़ पर तारीख़ मिलने के बाद आज आखिर कार वो दिन आ ही गया था, ज़ब विनोद जी की बेटी आरोही के केस की सुनवाई होना थी
बाहर बेंच पर बैठे अपनी बेटी की तस्वीर हाथ में पकड़े नम आँखों से उसे निहार रहे विनोद जी के पास उनकी पत्नि आयी और उनके कांधे पर हाथ रखते हुए बोली " चलिए अब, अंदर चलते है,, अदालत का समय हो रहा है,,, हमारी वकील भी आ गयी है,,"
"हाँ, चलो चलते है " विनोद जी ने कहा और चलने लगे तब ही अपनी पत्नि की तरफ देखते हुए बोले " क्या बात है? इस तरह परेशान क्यूँ नजर आ रही हो? "
"कुछ नहीं बस डर लग रहा है, कि अगर इस बार भी हमारी बेटी के कातिल बच कर निकल गए तो क्या होगा, आज भी अगर कोई नयी तारीख़ मिल गयी तो क्या होगा, कब तक हम दोनों यूं ही अदालत के चककर लगाते रहेंगे " सारिका जी ने कहा विनोद जी से
"तब, तक ज़ब तक मेरी बेटी को इंसाफ नहीं मिल जाएगा " विनोद जी ने कहा
"नहीं मिलता इंसाफ, मैंने आपसे पहले ही कहा था, उन सब को उनके हाल पर छोड़ देते है, हमारी बेटी जा चुकी है उसे कोनसा अब वापस आ जाना था," सारिका जी ने कहा
"नही ज़ब तक उन लोगो को उनके किए की सजा नहीं दिला देता तब तक यूं ही कोट के चककर लगाता रहूंगा, मेरी बेटी तो न बच सकी लेकिन मैं उन लोगो को किसी और की बेटी के साथ खिलवाड़ करने नहीं दूंगा, फिर किसी की बेटी को वो लोग मौत के घाट उतार देंगे, " विनोद जी ने कहा और आगे बड़ गए
"रुक जाइये मुझे छोड़ कर कहा चल दिए," सारिका जी ने कहा और उनके साथ चलने लगी
वो अदालत के अंदर प्रवेश कर चुके थे, थोड़ी देर बाद अदालत की कार्यवाही शुरू हो गयी थी, कटघरे में एक शख्स खड़ा था और उसका बाकि परिवार दूसरी जगह बैठा था जहाँ बांकी लोग बैठे थे
"अदालत की कार्यवाही शुरू की जाए " कुर्सी पर बैठे जज साहब ने कहा
"जज साहब कटघरे में खड़ा ये शख्स और इसका परिवार एक मासूम लड़की के हथयारे है " अदालत की कार्यवाही शुरू करते हुए वकील साहिबा ने कहा
"माय लार्ड,, वकील साहिबा मेरे मुवाक्कील पर झूठा इल्जाम लगा रही है, उस लड़की ने खुद ख़ुशी की थी न की उसे मारा गया था, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आपकी टेबल पर रखी है, " दूसरी तरफ के वकील ने कहा
जज साहब ने रिपोर्ट देखी वो कुछ कहते तब ही विनोद जी चिल्लाते हुए खडे हुए और बोले " ये झूठ है, मेरी बेटी का क़त्ल हुआ था और उसके कातिल कोई और नहीं बल्कि कटघरे में खड़ा ये शख्स और उसके घर वाले है, जिन्होंने मेरी फूल सी इकलौती लड़की को मुझसे दूर बहुत दूर कर दिया,, जज साहब ये सब झूठ बोल रहे है मेरी बेटी ने खुदखुशी जरूर की है लेकिन उसके पीछे का कारण ये लोग थे "
"आर्डर,,, आर्डर,,,, आपको जो कुछ कहना है कटघरे में आकर कहिये " कुर्सी पर बैठे जज साहब ने कहा
विनोद जी को कटघरे में बुलाया गया वो कुछ कहते तब ही दूसरी तरफ का वकील बोल पड़ा " जज साहब,,, जैसा की इन्होने कहा कि इनकी बेटी ने खुद ख़ुशी जरूर की है, लेकिन उसके पीछे का कारण मेरे मुवाक्कील को बता रहे है, तो मैं इस बात की पुष्टि करता चलू कि इन्होने मेरे मुवाक्कील के साथ धोखा किया था, इन्होने अपनी जेहनी मरीज बेटी को मेरे काबिल दोस्त विक्रांत के साथ ब्याहा दिया था, असल में तो उसे दौरे पड़ते थे वो पागल थी उसकी चीखो की आवाज़ो के गवाह आस पड़ोस के लोग खुद है और उससे भी बड़ा सबूत आपकी टेबल पर रखा है, और वो है इनकी बेटी आरोही की रिपोर्ट जो बताती है कि इनकी बेटी पागल थी और उसी पागल पन के चलते उसने खुद ख़ुशी कर ली और अब ये लोग मेरे दोस्त को कसूरवार ठहरा रहे है "
"झूठ सरासर, झूठ मेरी बेटी पागल नहीं थी, बल्कि इन लोगो ने उसे पागल बना दिया था, जज साहब मेरी बेटी पागल नहीं थी नहीं थी वो पागल " विनोद जी ने कहा रोते हुए
विनोद जी की तरफ वाली वकील भी खामोश थी, क्यूंकि उनके पास कोई सबूत नहीं था जो साबित कर सके कि आरोही का क़त्ल हुआ था, विक्रांत के घर वालों ने सब कुछ जाली बना कर अदालत में सबूत के रूप में पेश कर दिया था
जज साहब कुर्सी पर बैठे सारे सबूत देखने के बाद बोले " जैसा की हम सब ही जानते है कि अदालत की कार्यवाही सबूतों के आधार पर की जाती है,विक्रांत के वकील ने जो सबूत दिए है उन्हें मद्दे नजर रखते हुए और आरोही की पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट को देखते हुए जिससे साफ जाहिर होता है कि आरोही के शरीर पर न तो कोई चोट का निशान था और न ही किसी हथ्यार से हमला हुआ था जिससे की इस वारदात को क़त्ल का नाम दिया जाए इसलिए ये अदालत आरोही के क़त्ल को कत्ल नहीं बल्कि पागल पन के चलते खुदखुशी करार देती है "
"रुक जाइये जज साहब,,, रुक जाइये,,," कटघरे में खडे विनोद जी ने कहा
उनकी ज़ोर दार आवाज़ ने पूरी अदालत में सन्नाटा ला दिया था, जज साहब भी रुक गए थे
तब ही विनोद जी ने कहा " मानता हूँ, मेरी बेटी के बदन पर किसी तरह के कोई चोट के निशान नहीं थे, उस पर किसी धार धार हथ्यार से वार नहीं किया गया था जिसे सबूत बना कर अदालत की कार्यवाही को आगे बढ़ाया जा सकता था, क्या एक लड़की को शादी के बाद उसके ससुराल वालों द्वारा कहे जाने वाले कटु शब्द, बात बात पर मिलने वाले ताने और मांग मुनासिब दहेज़ न अदा करने पर हर दिन उठाने वाली जिल्ल्त किसी हथ्यार से कम है क्या
उस के शरीर पर वार न करके हर दिन उसकी आत्मा को जख़्मी करना क्या किसी कत्ल से कम नहीं है, दो साल,,, दो साल हो गए थे मेरी फूल सी बेटी को इन लोगो को दिए हुए मेरे घर थी तो उसकी मुस्कान से चारो दिशाये खिल उठती थी, उसकी एक झलक से हम दोनों बुढ़िया बुड्ढे का दिन बन जाता था
बेटा होता तो बुढ़ापे का सहारा बना कर अपने पास रख लेते लेकिन एक लड़की थी दुनिया की रीत भी निभानी थी घर भी तो नहीं बैठा सकते थे इसलिए, शादी के बंधन में बांधना भी तो जरूरी था, कन्यादान का फ़र्ज़ भी तो अदा करना था इन्ही सब सोच विचार के साथ अपने आँगन की चिड़िया को इन लोगो के घर की लक्ष्मी बना कर भेज दिया था, सोचा था बेटी के फ़र्ज़ से अदा हो गए है अब आराम से तीर्थ यात्रा पर जाएंगे,
लेकिन नहीं जानते थे, ज़ब तक इन जैसे लोग दुनिया में है बेटी के माँ बाप शादी के बाद भी चिंता मुक्त नहीं हो सकते बल्कि शादी के बाद तो और चिंता बड़ जाती है, बेटी के माँ बाप की,, मेरे पास जो कुछ भी था सब कुछ अपनी एकलौती बेटी को दे दिया था बस सर छिपाने के लिए एक छत का आसरा था वो भी ज़ब तक ज़ब तक हम लोग जिन्दा थे उसके बाद वो सब भी मेरी बेटी का और उसके बाद इन लोगो का ही होता,,
शादी के बाद से ही उसे बात बात पर प्रताड़ित किया जाने लगा था, भले ही मेरी बेटी बताती नहीं थी बच्चें समझते है कि माँ बाप से अपनी तकलीफे छिपा लेंगे लेकिन वो भूल जाते है कि हम लोग उनके माता पिता है, उनके हाव भाव देख कर उनके दिल का हाल जान लेते है
दो साल मेरी बेटी ने अपना घर बचाने की नाकाम कोशिश की, शरीर के साथ साथ आत्मा को भी प्रताड़ित करती रही, हम लोग परेशान न रहे इसलिए खुद हर परेशानी का सामना खुद करती रही इस आस के साथ की ये लोग बदल जाएंगे लेकिन कुत्ते की दुम एक वक़्त को टेड़ी से सीधी हो सकती है लेकिन इन जैसे लोगो की सोच और दहेज़ के खातिर फूल जैसी बेटियों को मौत के घाट उतार कर अपना पेट भरने का लालच कभी खत्म नहीं हो सकता
मेरी एक लड़की थी वो इन लोगो को दे दी थी उसके बाद भी इन्हे यही शिकायत थी कि दिया ही क्या है,,बस उन्ही तुच्छ चीज़ो के चलते इन्होने मेरी बेटी को मुझसे दूर बहुत दूर कर दिया,,, वो कब तक बर्दाश्त करती कब तक हमें अपनी तकलीफो से दूर रखती ये जानते हुए भी कि वो बताये या न बताये हम सब समझते है, और फिर थक हार कर उसने खुद को फांसी पर लटका दिया
भले ही आज मेरे पास इस बात का सबूत नहीं है कि मेरी बेटी ने खुद ख़ुशी नहीं की थी बल्कि उसका कत्ल हुआ था और जख्म उसके शरीर पर नहीं उसकी आत्मा पर थे जिन्हे वो पिछले दो सालो से सहती आ रही थी "
उनकी बातों ने पूरी अदालत में सन्नाटा सा छा दिया था सब लोग बस उन्हें ही देख रहे थे, जज साहब ने भी दोबारा छान बीन करने की बात रख दी थी ताकि असली गुनेहगारो को सजा मिल सके
समाप्त......
प्रतियोगिता हेतु
अदिति झा
27-Jun-2023 08:43 PM
Nice
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Alka jain
27-Jun-2023 07:39 PM
Nice 👍🏼
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kashish
07-Jun-2023 04:04 PM
fantastic story
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