Rishabh tomar

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लेखनी ग़ज़ल -20-Feb-2023

पागल हूँ घटिया हूँ सबका मैं ही हूँ दोषी
जुर्म ए इश्क़ करके खुद में ही रहा पोशी

अब इश्क रहा कहाँ है रूह का सदका
चादर है चीख है और फिर  ख़ामोशी

रूह जिश्म में जिश्म चुना इस वजहा
दौलत की थी तुमको बस मदहोशी


हैलो सुनते ही फोन पर रो पड़ता हूँ
अब भी मुझसे दूर हुई न है बेहोशी

कहना सबसे हर पल तेरी फिक्र करी
पागल था करना तुम मेरी सरगोशी

झूठा था कहता था नशा नही करता
चाही इश्क़ की उसने सर-ए-मय-नोशी 

झूठा एक निवाला बस हाथों में हाथ
उसको नही थी शौक़-ए-हम-आग़ोशी

अब क्या ? मौत की राह को तकता हूँ
तुझको पाने की न है कोई आगोशी

जान लिया है मैंने कुछ लोगो का सच
चीख उठूँगा बन्द करो ये कानाफूसी

चकले वालो का क्या उनका पेट पले
कुछ इज्जत वाले भी करते फ़रोशी

रूह जिश्म दोनो ही बेच डाले तुमने
मैं समझा तुमको चंपारन की कोशी

ऋषभ गुलाम था तेरा अब बहक गया 
याद आया अब न होगी ये फरामोशी

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14 Comments

Radhika

01-Mar-2023 12:50 AM

Nice

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Rishabh tomar

11-Mar-2023 10:48 PM

धन्यवाद राधिका

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बहुत ही सुंदर और बेहतरीन रचना

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Rishabh tomar

11-Mar-2023 10:48 PM

बहुत बहुत धन्यवाद भाई

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Alka jain

20-Feb-2023 11:12 PM

Nice 👍🏼

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Rishabh tomar

21-Feb-2023 01:45 AM

Shukriya alka ji

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