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स्वर्णमुखी छंद




स्वर्णमुखी छंद


कोई नहीं पराया जग में, दो सब को सम्मान।

भेदभाव को दफ़नाओ अब, चलो नेति के पास।

सब को एक समझनेवाले, के अंतस में ज्ञान।

देख रही है सारी दुनिया, तुझसे ही है आस।


सब के प्रति अनुराग भाव रख, बन जा सब का मीत।

स्नेहिल भावों की गंगा में, खिलता दिव्य सरोज।

जग में ब्रह्मलोक को देखो, लिख मनमोहक गीत।

प्रेमिल दिल के पास विराजत, उन्नत दिव्य उरोज।


मानव हो कर ऊपर उठना, सुनो देव के बोल।

देना सीखा जिसने सबको, जग में वही महान।

अंतस में देवत्व जगा कर, बन जाओ अनमोल।

कर पर कर को रखनेवाला, अति मोहक धनवान।


वंदनीय वह मानुष जग में, जिसका हृदय विशाल।

नमन किया करता चलता है, मतवाली है चाल।




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4 Comments

अदिति झा

03-Feb-2023 11:34 AM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

02-Feb-2023 11:30 AM

बहुत खूब

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बेहतरीन

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