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वो मेरे निश्छल प्रेम का अस्तित्व, मेरा हक़ वो मेरा सम्मान कहाँ है? कहने को तो मैं अर्धांगिनी हूँ तेरी, पर मेरी अपनी पहचान कहाँ है? तुम्हें भी तो सब कुछ ...