मर्तबा

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विषय:-- स्वैच्छिक कई मर्तबा मैं लौह बना, नित सहा व्यंग शर चोटों को। मुस्कानों में हिल-मिल बैठा, छोड़ सिसकते छल ओटों को।। जग में जितने मासूम मिले सबने हमको दुख शुदा ...

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