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माँ की महिमा




माँ की महिमा

         (चौपाई)


सर्वोपरि है माँ की महिमा।

गगन शीर्ष पर माँ की गरिमा।।

उपमारहित दिव्य नाता यह।

जगत रचयिता विख्यात यह।।


माँ की ममता सब से ऊपर

माँ सर्वेश्वरि अनुपम सुंदर।।

माँ ब्रह्माणी आदि शक्ति है।

ज्ञान प्रदात्री प्रेम-भक्ति है।।


ब्रह्मा-विष्णु-महेश यही है।

दुर्गा-काली वेश यही है।।

महा सरस्वति मोहक ज्ञाता।

गुणसम्पन्ना सभ्य सुजाता।।


सब रूपों में केवल माता।

सकल रसामृत योग विधाता।।

सृष्टि रचयिता पालनकर्त्ता।

गर्भधारिणी जननी भर्त्ता।।


संरक्षक बन रक्षा करती।

गुरु वरेण्य बन दीक्षा देती।।

सहज शिक्षिका बन कर चलती।

निर्देशक बन दिशा बदलती।।


दूध पिलाकर प्यास बुझाती।

अन्न खिला कर भूख मिटाती।।

शिशु पर ध्यान सदा रहता है।

माँ का स्नेहिल मन खिलता है।।


माँ बिन सृष्टि नहीं संभव है।

माँ से ही सारा वैभव है।।

माँ से संस्कृति की रचना है।

माँ सर्वोत्तम मधु वचना है।।


माँश्री का जो करता वंदन।

जग करता उसका अभिनंदन।।

माँ को जो अपमानित करता।

नरक कूप में निश्चित गिरता।।


माँ ही धरती माँ ही गगना ।

माँ से शोभित सारा अँगना।।

माताश्री ही सृष्टि नाद है।

माता से ही प्रकृतिवाद है।।


परम दिव्य प्रिय प्रकृति कुमारी।

महा शक्तिमय मातृ पियारी।।

अखिल निखिल ब्रह्मांड मातृमय।

सुयश सुफल शिव -शिवा प्रेममय।।


माता का ही पूजन करना।

आजीवन तुम सहज चमकना।।

माँ का बस आशीष चाहिए।

झुका हुआ यह शीश चाहिए।।


माँ दे देकर सारा जीवन।

गढ़ती रहती शिशु मन-उपवन।।

माँ से शिशु मानव बनता है।

सुंदर जगती को गढ़ता है।।


मातृ शक्ति को सदा जानना।

माँ के भावों के गुण गाना।।

माँ का बस आशीष चाहिए।

झुका रहे यह शीश चाहिए।।




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2 Comments

अदिति झा

08-Feb-2023 12:15 AM

Nice 👌

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Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 12:05 PM

Nice

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