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प्रेमाधारित चतुष्पदी



प्रेमाधारित चतुष्पदी


तुझ को ढूढ़ रहा मन कब से।

यह मन पूछ रहा है सब से।।

चलते-चलते थका बेचारा।

फिर भी अति उत्साहित मन से।।


मन में इसके एक तुम्हीं हो।

प्रातिभ मनहर रूप तुम्हीं हो।।

कसम खुदा की अति व्यकुल यह।

इसका पावन लक्ष्य तुम्हीं हो।।


अति निरीह है बिना तुम्हारे।

मरा जान यह बिना सहारे।।

तुम्हीं सिर्फ रक्षक बन सकते।

तुम्हीं परम मधु प्राण पियारे।।


लुका-छिपी मत अब तुम करना।

इस से नहीं ईश से डरना।।

रहम करो इस दीन-हीन पर।

अपने संरक्षण में रखना।।


खोज रहा मन जगह-जगह पर।

नहीं कहीं से शुभमय उत्तर।।

खग-मृग-मधुकर से यह पूछत।

क्षीण काय हो गया निरुत्तर।।


जंगल-जंगल भटकत यह मन।

नदी किनारे घूमत यह तन।।

क्यों तुम नहीं दिखायी पड़ते?

आ प्यारे!अब करो आगमन।।


कृपा करो अब मेरे अनुपम।

दिल के मालिक हे प्रिय उत्तम।

जीर्ण-शीर्ण को नवल बना दो।

हे मेरे प्रियवर सर्वोत्तम।।






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1 Comments

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 12:12 PM

Nice

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