सोरठरोला
सोरठरोला (सोरठा कुच मर्दनम)
जो करता है प्रीति,वही सच्चा मानव है।
जिसकी विधा अनीति, वही राक्षस दानव है।।
सदा प्रीति का दान, दिलाता स्थायी सत्ता।
जहाँ खड़ा अभिमान, वहीं पतझड़ का पत्ता।।
जहाँ ज्ञान-विज्ञान, वहीं विकसित पथ बनता।
जहाँ महान सुजान,वहीं सब सुंदर लगता।।
सोरठरोला नव्य, परम यह मंगलकारी।
छंद बहुत है भव्य, मधुर मोहक सुखकारी।।
कुच का मर्दन होय, सोरठा-रोला जागे।
दोनों रोटी पोय,एक हो आये आगे।।
अभिनव सफल प्रयोग, छंद दोनों खुश होते।
कर आपस में योग, उभय नव बीजक बोते।।
सोरठरोला छंद, बहुत लगता मनभावन।
मिलत अधिक आनंद, लगत बरसत है सावन।।
होता रहे प्रयत्न, योग नव नूतन करना।
होय ज्ञान का यत्न, नव्य छंदों को गढ़ना।।
सोरठरोला नित्य, करे हित का संवर्धन।
होय हृदय से स्तुत्य, पूज्य सहस्र अभिनंदन।।
Renu
23-Jan-2023 05:01 PM
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