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बिखराव

नर्मदे हर
प्रदत्त विषय    ***बिखराव***
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                बिखराव
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मन विचार मिल ना पाते
विचारो मैं फर्क जमीन आसमाँ का हो जाता
बस यही आपसी मतभेद करता
काम बिखराव का
बिखराव किसी चीज का 
नही होता अच्छा
समाज बीच हो या घर घर का
अलग कोई  चीज या लोग हो  होता अच्छा नही 
बिखराव लगता
रहनी करनी कथनी करनी का फर्क होता परस्पर
दूर होते सब अपने मन मिले ना एक दूजे के
हाय यह बिखराव क्या क्या न बताता
मन् मुटाव ना जाने क्या क्या दिखलाता
रहते एक संग मन होते मीलों दूर
घर के घर मैं  हाल चाल ना पूछे एक दूजे का
पराये दिल के समीप आ जाते
अपनो को फूटी आँख देखना भर भी ना भाता
ऐसी आ जाती दूरी परस्पर
आज की पीढ़ी करती मनमानी
सुने ना बड़ों का कहना
बात बुजुर्गो की मान बकवास
परे उनको हटाते
मान सम्मान उनका भूल जाते
बिखराव बस आ जाता अपने देवतुल्य को दूर कर देते
अपमान उनका यही बिखराव करवाता
यही बिखराव रिश्तों मैं साथ दूरी
के खटास भी लाता
ऐसी खटास की भान होने पर
इंसान होता शर्मिंदा
बेहोशी मैं ना जाने बड़ों को कुछ कुछ बोल जाते 
बाद पश्चताप के आँसु बहाते
हाथ जोड़ माफी मांगते होते
शर्मिंदा
ये बिखराव मनमुताव ला दूर करता अपनों को अपनों से
आज किसी को सुनना धीरज रखना आता नही
मनमानी कर जीवन खुल कर जीना बस जीवन शैली होती
गंभीरता से काम लेते नही
समझदारी जैसे रखी गिरवी
गाँव के कोने मैं
जरा सोचो क्या कर रहे आप
सुन जो लोगे बड़ों की बात हो गंभीर सफल जीवन होगा
बड़े इंसान बन जाओगे
ऐसे कर बिखराव बड़ों का दुखा दिल क्या मिलता 
ये अपने तो अपने होते
इनसे मनमुटाव कर कहाँ जाओगे
लगेगा बड़ा पाप l



वर्षा उपाध्याय
रेणु 
खंडवा,

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1 Comments

Renu

18-Jan-2023 10:15 AM

👍👍🌺

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