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कुण्डलिया




कुण्डलिया


चलना ऐसी चाल जो, दे दे पावन लक्ष्य।

सभ्य सुसंस्कृत मनुज बन, चाहे रहो अलक्ष्य।।

चाहे रहो अलक्ष्य, स्वार्थ की डोर न छूना।

जो  भी तेरे संग,सीख उसको दे दूना।।

कहें मिसिर कविराय, सब्र कर जीते रहना।

लख आत्मिक सिद्धांत,समर्थक बनकर चलना।।


      मिसिर की कुण्डलिया


वाचन हो शुभ भाव का, सत्कर्मों का जाप।

एक जगह पर बैठ कर, सारी पृथ्वी नाप।।

सारी पृथ्वी नाप, भ्रमण मत करना भ्रम में।

शिव-गणेश को देख,घूम थोड़े से श्रम में।।

कहें मिसिर कविराय, ग्रहण कर सुंदर आसन।

बनो बुद्धि का सिंधु,करो विवेक का वाचन।


       मिसिर हरिहरपुरी की

            कुण्डलिया


जपते रहना राम को, है शरीर का धर्म।

लौकिक कर्मों को सदा, समझ राम का कर्म।।

समझ राम का कर्म,राम को  देखो सब में।

राम दिखें चहुँओर,क्षिति-जल-पावक-गगन में।।

कहें मिसिर कविराय, राममय बन जो चलते।

वही सहज अविराम, राम को रहते जपते।।





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1 Comments

Abhinav ji

06-Jan-2023 08:35 AM

Very nice 👌👍

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