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कुण्डलिया




कुण्डलिया


पैसा-पद-सम्मान ही, सब नेता की चाह।

सदा लाभ के द्वार पर,अंतिम इनकी राह।।

अंतिम इनकी राह, सदा ये तिकड़म  करते।

स्वारथ में आकंठ, डूब कर मरते रहते।।

कहें मिसिर कविराय, नहीं ये ऐसा-वैसा।

भूख लगी है तेज, चाहिये इनको पैसा।।

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1 Comments

Muskan khan

09-Jan-2023 05:59 PM

Nice

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