डॉ. रामबली मिश्र
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कुण्डलिया
पैसा-पद-सम्मान ही, सब नेता की चाह।
सदा लाभ के द्वार पर,अंतिम इनकी राह।।
अंतिम इनकी राह, सदा ये तिकड़म करते।
स्वारथ में आकंठ, डूब कर मरते रहते।।
कहें मिसिर कविराय, नहीं ये ऐसा-वैसा।
भूख लगी है तेज, चाहिये इनको पैसा।।
Muskan khan
09-Jan-2023 05:59 PM
Nice
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Muskan khan
09-Jan-2023 05:59 PM
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