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अभिलाषा



अभिलाषा    (चौपाई)


है मेरी अंतिम अभिलाषा।

विजयी हो मानव की आशा।

नहीं रहे निराश की जगती।

आशाओं की हो यह धरती।।


सब में हो जीने की आशा।

जानें जीने की परिभाषा।।

जीने का हो नियम निराला।

थोड़े में भर जाये प्याला।।


आत्मतोष की ओर बढ़े मन।

कम में भी संतुष्ट रहे मन।।

ज्यादा के चक्कर में मत बह।

लाभ-हानि को एक समझ रह।।


मन-समाज में समरसता हो।

सब में बौद्धिक व्यापकता हो।।

सब का मन निर्मल बन जाये।

दूषित मन मिट कर रह जाये।।


सकल विश्व हो पावन गंगा।

रहे स्वस्थ मानव मन चंगा।।

समदर्शी हो सारी जगती।

हरियाली देखे यह धरती।।


कम से कम में जीना आये।

मन को सुख-दुःख पीना आये।।

जीवन में इकजुटता आये।

मानवता की प्रियता आये।।




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1 Comments

Sachin dev

17-Dec-2022 05:15 PM

Amazing

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