गगन
दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता
विषय शब्द***गगन***
ऊपर ये गगन विशाल
नीचे ये गहरा पाताल।
बीच में ये धरती
क्या किया तूने भगवन कमाल।
देख कर होते हम हैरान
नज़र नही आता एक भी खंबा
फिर भी गगन युगों से है खड़ा।
तूने बनाया गगन में सूरज, दिखे अगन का गोला।
फिर बनाया चंद्रमा, लाखो सितारों का टोला।
गगन में पवन का झकोला
बादलों में पानी और शोला (बिजली)
बादलों का गगन में उड़न खटोला
जिसे देख हम सब का मन डोला।
सूरज की अरुणिम किरणों से
गगन हुआ सिंदूरी।
नीड़ अपना छोड़ चले पंछी।
पंछी उड़ गगन में करते करवल
लगती उनकी मीठी बोली
गगन में जब आएं बादल, देते छतरी सी छाया।
गगन से बरसता पानी, लेटे फिर हम छाता।
पंछी विहीन कैसा गगन?
नहीं फूल पत्ते और उपवन।
नील गगन अब दिखता कम
झेल रहा प्रदुषण की मार
गगन में वायु भी है अब दुषित
पंछी भी हो रहें हैं लुप्त।
नहीं दिखते अब तारों का नज़ारा
क्यूंकि सोते हैं घर के अन्दर सारे।
गगन को फिर से कवियों का
नील गगन बनाना होगा।
धूप में जलता खेत हमारा, बादल को बुलाना होगा।
देश को प्रदूषण रहित बनाना होगा।
गीता ठाकुर दिल्ली से
Rakesh rakesh
13-Dec-2022 05:39 PM
Shandar
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Punam verma
13-Dec-2022 08:51 AM
Nice one
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Abhinav ji
13-Dec-2022 07:53 AM
Very nice👍
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