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मनहरण घनाक्ष्ररी




मनहरण घनाक्षरी

 प्रधान तत्व शारदा,
अहैतुकी कृपा सदा,
मान ज्ञान दान शान,
मातृ को सजाइए।

स्वभाव शील मोहिनी,
घमंड भाव मर्दनी,
मंडनीय वंदनीय,
मातृ को जगाइए।

 बयार दिव्य प्रेम की,
पुकार योग क्षेम की,
संहिता पुनीत नीति,
मातृ से लिखाइए।

सदा लिखो पढ़ा करो,
नित्य चल चढ़ा करो,
सीम हो गगन सदा,
ज्ञान को बढ़ाइए।

मत रुको झुको नहीं,
कापुरुष बनो नहीं,
विज्ञ प्राण फूंक फूंक,
चांदनी बुलाइए।

मातृ लोक सुंदरम,
अन्नदा वसुंधरम,
शक्ति शारदा नमामि,
भक्ति को सराहिए।

दुर्ग मातु प्राणनाथ,
आदि अंतहीन हाथ,
सरस्वती स्वयं वही,
ज्योति को जलाइए।

लेखनी करस्थ कर 
  धारणा समस्त धर,
गति प्रधान कामना,
वेद स्व बनाइए।



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3 Comments

Ayshu

17-Nov-2022 07:08 PM

Nice

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Muskan khan

17-Nov-2022 05:01 PM

Amazing

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Gunjan Kamal

17-Nov-2022 09:01 AM

बहुत ही सुन्दर

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