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मदिरा सवैया (वर्णिक)




मदिरा सवैया (वर्णिक)
7 भगण+गुरु

राघव राम चलावत बाणन, मारता काटत दैत्य सभी।
तीर कमान सदा कर लेकर, देखत डोलत ताड़त भी।
कांपत लोटत पोटत दानव, देख सुदर्शन चक्र तभी।
सोचत आवत है अब संकट, मृत्यु समीप न दूर अभी।

संतन के रघुनायक रक्षक, भक्षक दानव के बनते।
वीर बहादुर शक्ति धरातल, मौन सदा रहते चलते।
धर्मविरुद्ध रहे यदि दानव, धूल चटावत वे रहते।
संगति सज्जन की अति सुंदर, निर्मल नीर बने बहते।

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2 Comments

Muskan khan

17-Nov-2022 05:04 PM

बहुत खूब

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Gunjan Kamal

17-Nov-2022 09:07 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 🙏🏻🙏🏻

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