Mahendra Bhatt

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मोह

# दैनिक प्रतियोगिता हेतु 

विषय:--'" मोह'"

डूबे सब ही मोह में, नहीं जगत की प्रीत!
दिलों में बनी दूरियां,ताक में रखी नीत!

माया मोह भरम सभी,झूठा है संसार!
अब तो कहीं मिले नहीं, पहले जैसा प्यार!

मोह जाल अब टूटता, छूटे सबरे रंग!
जीने का अब मन नहीं, छिटकी सभी उमंग!

मोह में राधिका बसी,नेह में रहे श्याम!
जीवन कटता जा रहा, लेकर हरि का नाम!

त्याग दीजिए मोह अब, छोड़ो राग - विराग!
सत्य को स्वीकारिए, मिथ्या का कर त्याग!

     **महेन्द्र भट्ट
(कवि -लेखक-व्यंग्यकार)
        ग्वालियर
२१/१०/२०२२

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4 Comments

Sachin dev

23-Oct-2022 01:18 PM

Nice

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Suryansh

23-Oct-2022 09:21 AM

बहुत ही सुंदर और संदेश देते हुए दोहे

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Khan

23-Oct-2022 12:11 AM

Bahut khoob 💐👍

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