Mahendra Bhatt

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प्रतीक्षा




हिन्दी दिवस प्रतियोगिता के लिए --

प्रतीक्षा  -----
तुम जल्दी में थे, 
रुके नहीं, 
हम फुर्सत में थे, 
खड़े रहे, 
तुमने मुड़कर भी  न देखा,
और, हम,
तुम्हारी पृष्ठभूमि देखते रहे, 
शायद, वह कहता रहा, 
कि चले आओ मेरे पीछे, 
मुझे पता है,
कि जरूरत पड़ेगी, 
कभी न कभी, 
तुम्हारी कहीं भी! !

       **महेन्द्र भट्ट 
(कवि -लेखक- व्यंग्यकार )
       ग्वालियर

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6 Comments

Wooow लाजवाब लाजवाब लाजवाब

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fiza Tanvi

24-Sep-2022 03:07 PM

Good

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Chetna swrnkar

18-Sep-2022 08:11 AM

बहुत सुंदर रचना 👌👌

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