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कविता---लालसा


कविता---लालसा

कुछ जीने की लालसा बची है
नया कुछ और करने की जद मची है

नए सोच पर उम्मीद की लौ जगी है
उस लौ को आशाओं के दीये में बदलनी है

आओ एक नया जोत जगाते हैं
नयी हवाओं का पैगाम लाते हैं

इस धरती  पर हम कुछ कर जाते हैं
आने वाली पीढ़ी को जीवन दे जाते हैं।

***
सीमा...✍️🌷
©®
#लेखनी प्रतियोगिता

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14 Comments

Swati chourasia

20-Sep-2022 07:49 PM

बहुत खूब 👌

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Suryansh

16-Sep-2022 07:19 AM

बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना

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Chirag chirag

15-Sep-2022 09:28 PM

Beautiful

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