तृष्णा
नमन मंच,
मेरी लेखनी,
तृष्णा
भूख ये प्यास सहज सरल बात रोज लगती ये बुझती ।
तृष्णा बस और और की न कर मन द्वेष न रख ।।
जितना पास तृप्त तु हो ले ।
कागज के टुकड़े बड़े निराले ।।
बुझे न बुझती प्यास इनकी।
जो चढ़े धुन इसकी खो विवेक बुद्धि खो दे तु ।।
तुझको सोचने समझने लायक न रखे ।
ये भूख तुझको कहीं का न छोड़े ।।
बस पैसा पैसा हर जगह दिखे ।
वक्त अपनों के लिए भी न निकले ।
वर्षा उपाध्याय ,खंडवा.
hema mohril
23-May-2024 02:40 PM
V nice
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Gunjan Kamal
22-May-2024 08:31 PM
बहुत खूब
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