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राज




नमन मंच
मेरी लेखनी,

            राज 

राज दिल के दिल में तू रख पट घूँघट के न खोल ।
कोई किसी का नही होता ।।
दुखती रग अपनी अपने पास रख ।
हर कोई अपना नहीं होता ।।
जान उसको अपना आप मन की वेदना बताते ।
जग जाहिर वो करता ।।
जख्म कम होने के बदले और ज़ख़्म मिल जाते ।
जग हँसायी होती अलग ।।
दोस्त की शक्ल में दुश्मन घूमते हज़ार ।
ज़माना बड़ा खराब ।
जितने कान बात जाति चार की चालीस हो जाति 

वर्षा उपाध्याय, खंडवा.





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1 Comments

Gunjan Kamal

23-Nov-2023 10:40 PM

👏🏻👌🏻

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