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दिल से दिल के तार

*दिल से दिल के तार*

 दिल में मन तो बसा हुआ है।
जन्म जन्म से सज़ा हुआ है।।
 नहीं निकल कर यह जायेगा।
 मधु वर माला पहनायेगा ।।

 शुभ सोलह शृंगार दिखेगा।
मस्ताना दिल नित चहकेगा।।
गगन मगन हो नृत्य करेगा।
सुरभित प्याला नित गमकेगा।।

 जन्मांतर तक मिलन रहेगा।
दीवानापन सदा  खिलेगा।।
धरती अम्बर मिल जायेंगे।
मन के वंधन खिल जायेंगे।।

 क्यों चुपचाप पड़े  रहते हो?
दिल की बात नहीं करते हो।।
चुप हो कर क्या मिल जायेगा?
क्या सचमुच मन खिल जायेगा??

दिल से दिल का तार जुड़े जब।
अति मनमोहक राग बढ़े तब।।
अंग अंग में तीव्र जोश हो।
मन में मस्ती सुखद होश हो।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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1 Comments

Mohammed urooj khan

19-Oct-2023 11:39 AM

👌👌👌👌

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