लेखनी प्रतियोगिता -03-Aug-2023 नियति का फैसला
शीर्षक = नियति का फैसला
आज शनिवार था, जिसके चलते आरुष दफ्तर से घर जल्दी आ गया था, वो घर के दरवाज़े पर खड़ा डोर बेल बजा रहा था, लेकिन अंदर से कोई जवाब न मिल पाने की वजह से उसने अपने बैग में रखी चाबी से घर का दरवाज़ा खोला और अपनी पत्नि मधु को पुकारते हुए घर के अंदर प्रवेश किया
"मधु,,, मधु,,, कहा हो तुम? क्या घर पर नही हो "
आरुष ने इधर उधर देखा लेकिन उसे मधु नही दिखाई दी,, वो घबराते हुए अपने कमरे की तरफ बड़ा ही था कि उसकी नजर बाहर लॉन की तरफ जाती है, जहाँ मधु न जाने किन ख्यालों में खोये हुए थी
उसे देख आरुष ने एक गहरी सास ली और उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला " थैंक गॉड,, तुम मिल गयी,,, कब से तुम्हे आवाज़ लगा रहा हूँ,,, मुझे लगा कि तुम घर पर नही हो "
मधु,, आरुष की आवाज़ सुन उसकी तरफ देखते हुए बोली " अ,, अ,,, आप,,, आप कब आये "
"क्या मधु? कब से आवाज़े लगा रहा हूँ,, और तुम कह रही हो कब आया,,, किन ख्यालों में खोयी हुई हो " आरुष ने कहा
"कही नही,,, बस यूं ही,,, आप जाकर फ्रेश हो जाइये,,, मैं ज़ब तक चाय बना कर लाती हूँ,,, मुझे तो याद ही नही रहा कि आज शनिवार है, आपका हॉफ डे हो जाएगा,,," मधु ने कहा वहाँ से जाते हुए
लेकिन तब ही आरुष ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया और कहा " मधु,,, चाय बाद को बना लेना,,, मुझे अभी चाय नही पीनी,,, पहले मुझे बताओ कि तुम इस तरह यहाँ बैठी क्या सोच रही थी, किन ख्यालों में खोयी हुई थी, जो मेरे आने का भी तुम्हे पता नही चला,,, और मैं काफ़ी दिनों से देख रहा हूँ, कि तुम कुछ खोयी खोयी सी रहने लगी हो,,, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न, काम के सिलसिले में तुम पर ज्यादा ध्यान भी नही दे पा रहा हूँ,,अब मुझे बताओ क्या बात है "
मधु ने उसकी तरफ देखा और उदास भरे स्वर में कहा " आप जानते तो है,मेरे उदास होने की वजह,,, तो फिर क्यूँ पूछ रहे है? "
"क्या, वही बच्चें वाली बात? " आरुष ने कहा उसकी तरफ देखते हुए
"हाँ, वही बच्चें वाली बात,,, आपको पता है,,, हमारे घर जो काम करने वाली आती है,,, वो अब तीसरी बार माँ बनने जा रही है,,, आपको पता है,,, उसके घर में पहले से ही दो बच्चें और है, और अब तीसरा भी आने वाला है,,, लेकिन वो खुश नही है, क्यूंकि उसका पति शराबी है,,, कुछ काम धंधा भी नही करता है,,, इस बच्चें को भी उसे ही पालना पड़ेगा,,,भगवान भी अजीब तरह के खेल खेलता है, जहाँ बच्चें की ज्यादा जरूरत है वहाँ एक भी नही है, और जहाँ कोई कदर नही है वहाँ दिए जा रहा है " मधु ने कहा उदासी भरे स्वर में
"ऐसा नही कहते है मधु, तुमने मुझसे वायदा किया था कि इस बारे में नही सोचोगी खुश रहोगी, लेकिन देखो तुम आज फिर वही सब सोचने लगी हो,,, इतना मत सोचा करो ये सब नियति का खेल है,, तुम्हारे हर वक़्त सोचने से सिवाय तुम्हारी तबीयत के कुछ नही बदलने वाला " आरुष ने उसे बैठाते हुए कहा
"कैसे सोचना बंद कर दू, चाह कर भी अपने दिमाग़ से अपनी औलाद का जिक्र नही निकाल पाती, मुझसे बर्दाश्त नही होता है, कि मेरी वजह से तुम भी औलाद के सुख से वांछित हो, एक बात कहू, तुम दूसरी शादी कर लो,, मैं खुद तुम्हारी दूसरी शादी कराऊंगी,, अपनी सौतन को अपनी बहन की तरह रखूंगी,, अगर नियति का यही फैसला है तो मैं इस फैसले को कबूल कर लूंगी,,, लेकिन इस तरह इस घर की दरो दीवारों को बच्चों की किलकारी से सूना नही देख सकती," मधु ने कहा रोते हुए
आरुष ये सुन थोड़ा तेज आवाज़ में बोला " मधु! क्या तुम पागल हो गयी हो,,, ये किस तरह की बाते कर रही हो, क्या मैंने कभी तुमसे बच्चें को लेकर कोई शिकायत की है,, जो इस तरह की बाते कर रही हो "
"हर बात लफ्ज़ो से बताई जाए जरूरी तो नही है, क्या मुझे खुद एहसास नही होता है, कि तुम्हारा दिल भी अपनी औलाद को सीने से लगाने का करता है, उसे गोदी में उठा कर कांधो पर बैठा कर घर की सेर कराने का करता है, तुम भले ही न बताओ लेकिन मैं सब समझती हूँ,, जानती हूँ तुम्हारे लिए आसान नही होगा,, और न ही मेरे लिए लेकिन हमें इस घर के लिए इसे आबाद करने के लिए ये कदम उठाना होगा,, खाली हम दोनों का आपसी प्यार काफ़ी नही इस मकान को घर बनाने के लिए, कमी मुझमे में है मैं माँ नही बन सकती तो तुम बाप के सुख से वांछित क्यूँ रहो?" मधु ने कहा उसकी आँखों में आँखे डालते हुए
"मुझे किसी की जरूरत नही है, मेरे लिए सिर्फ तुम्हारा साथ ही काफ़ी है, मैं तुम्हारे लिए और तुम मेरे लिए सब कुछ हो,, हमें किसी तीसरे की ज़रूरत नही है, तुम बेवजह ही परेशान हो रही हो,, मुझे नही चाहिए कोई औलाद,, मैं नियति के इस फैसले से उदास नही हूँ,,, बहुत से ऐसे दंपत्ति है जिनके यहाँ औलाद नही होती है,, तो इसका मतलब ये तो हरगिज नही की सब दूसरी शादी करले,,, या औलाद न होने की वजह से अपने रिश्ते को ही खत्म कर दे " आरुष ने कहा
"मुझे कुछ नही सुनना,,, मुझे इस घर में तुम्हारी औलाद चाहिए,,, जिसे भले ही मैं अपनी कोख से जन्म न दू लेकिन कहलाएगी तो वो तुम्हारी ही संतान,,, और मैं तुमसे मेरे साथ रिश्ता ख़त्म करने का कब कह रही हूँ,,, मैं तो बस तुम्हे एक नये रिश्ते में बाँधने का कह रही हूँ, ताकि मेरी वजह से जो सुख तुम्हे नही मिला पाया है वो तुम्हे मिल जाए,,, तुम भी अपनी औलाद का सुख भोग पाओ,,, जैसे और माँ बाप भोगते है, हमारा रिश्ता पहले और मजबूत हो जाए " मधु ने कहा
"तुम शायद मेरी बातों को समझ नही रही हो,ठीक है तुम मेरे साथ आओ मैं तुम्हे एक जगह लेकर चलता हूँ, शायद वहाँ जाकर तुम्हे कुछ समझ आ जाए,,,और तुम नियति के इस फैसले को कोसने के बजाये उसमे खुश रहना सीख जाओ " आरुष ने कहा और उसका हाथ पकड़ कर अपनी गाड़ी कि तरफ खींच कर ले गया,,, मधु पूछती रही लेकिन उसने कुछ नही बताया
उसने उसे गाड़ी में बैठाया और गाड़ी मोड़ कर हाईवे पर डाल दी, और बहुत तेजी के साथ गाडी ले जाकर एक जगह रोक दी, गाड़ी से पहले खुद उतरा और फिर गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर मधु को बाहर निकाला, मधु की नजर गाड़ी से उतरने के बाद ज़ब वहाँ लगे एक बड़े से बैनर पर पड़ी तब उसने आरुष की तरफ तिरछी नजर करते हुए कहा " ये कहा लेकर आये हो,, ये तो वृद्ध आश्रम है "
हाँ तुमने ठीक कहा ये वृद्ध आश्रम ही है,,, उन लोगो के रहने की जगह जिनका कोई नही होता ईश्वर के सिवा लेकिन यहाँ मैं तुम्हे ऐसे ऐसे लोगो से मिलवाऊंगा जिनके सब होते हुए भी वो यहाँ रहने पर मजबूर है, और ज्यादातर वो माँ बाप है, जिनकी औलाद स्वयं उन्हें यहाँ छोड़ कर गयी है,,, आओ तुम्हे मिलवाता हूँ,,, ताकि तुम्हे आभास हो सके
ये कह कर आरुष मधु को अंदर ले गया, सबसे पहले उसने वहाँ रह रहे एक बुजुर्ग आदमी से मधु की मुलाक़ात कराई और उनके बारे में बताते हुए कहा, कि ये यहाँ कुछ महीनों पहले ही आये है,,, और यहाँ छोड़ कर जाने वाला इनका इकलौता बेटा था जिसे इन्होने बहुत मन्नतो और फरियादो से पाया था,,,सिर्फ और सिर्फ इस वजह से की इनका नाम लेने वाला कोई इस दुनिया में होगा, इनके बुढ़ापे का सहारा कोई होगा,,, लेकिन देखो इनका बुढ़ापा अब कहा गुजर रहा है,,, जिस घर को इन्होने अपने खून पसीने से सींचा उसी घर से इन्हे निकाल दिया गया
और वो जो सामने दुसरे बुजुर्ग बैठे है,,, उन्होंने तो अपनी पत्नि को अपनी जीवन साथी को अपनी आँखों के सामने मरते देखा है उसके होंठो पर एक ही नाम था कि उनके बच्चें उन्हें लेने आएंगे और अफ़सोस कोई नही आया
आओ आगे चलो तुम्हे और ऐसे लोगो से मिलवाता हूँ ये वृद्ध आश्रम भरा हुआ है, इन जैसे माँ बाप से जिन्होंने अपना फर्ज़ तो बखूबी निभाया अपने हिस्से की खुशियाँ भी न्योछावर कर दी पर अफ़सोस ज़ब उनका समय आया तो सिवाय मायूसी के कुछ हाथ नही लगा
तुम कह रही थी न कि क्या कभी मेरा मन नही करता अपनी औलाद को गोदी में उठाने का उसे प्यार करने का, लेकिन ज़ब मैं यहाँ मौजूद माँ बाप को देखता हूँ तो मुझे एहसास होता है कि औलाद के इस तरह होने के दुख से औलाद के न होने का दुख अच्छा है, कम से कम हमारे पास बहाना तो है न कि हमारी औलाद नही है,,, हमें उनके हाथों इस तरह रुसवा तो नही होना पड़ेगा,,, माना हर औलाद बुरी नही होती लेकिन हर औलाद अच्छी भी तो नही होती है,
मेरा तुम्हे यहाँ लाने का मकसद सिर्फ इतना ही था कि तुम ज्यादा मत सोचो,,,हमें हमारे इस रिश्ते को मजबूत करने के लिए औलाद का सबूत देने की जरूरत नही है, हम आज भी पति पत्नि है कल भी रहेंगे और ज़ब तक हमारा साथ है तब तक एक अच्छे जीवन साथी की तरह अपना जीवन व्यतीत करेंगे,,, हमें किसी की बातों में आकर औलाद न होने की वजह से खुद को परेशान नही करना है, नियति का जो फैसला है उसी में खुश रहना है तुम भी अपने आप को गुनेहगार और अपशब्द कहना बंद करो, आरुष ने कहा
मधु आरुष की बाते सुन रही थी, वो चाह कर भी कुछ नही कह पा रही थी, कही न कही वो सही तो कह रहा था, कौन कब तक किसके साथ रहता है, बाद को औलाद की जुदाई का दुख सहने से अच्छा है कि औलाद के न होने का और भगवान की मर्जी में ही खुद की मर्जी शामिल कर लेना ही अच्छा है,
समाप्त,,,,,
किसी को कोई बात बुरी लगी हो तो माफ़ी चाहते है, कभी कभी नियति के फेसलो पर चलने में ही भलाई होती है,,, क्यूंकि हम तो पल भर का भी नही जानते लेकिन जो ऊपर बैठा है वो बहुत आगे तक का जानता है,,, हमें कब क्या चाहिए वो हमसे बेहतर जानता है,, वो औलाद देकर भी आजमाता है और न देकर भी,,, ये सब उसके खेल है कोई औलाद के लिए परेशान है तो कोई औलाद की वजह से परेशान है
Abhinav ji
04-Aug-2023 07:04 AM
Nice 👍
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