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दयानिधान

नमन मंच
मेरे भाव,


       दयानिधान 


है दसों दिशा का स्वामी ।
आकाश पाताल रचियाता है दया निधान ।।
श्रष्टि रचिता तू ब्रह्मा सबका स्वामी ।
दया करो कृपा करो नरजन्म मिला हम नादान ।।
दया की दृष्टि सदा बना कर रखना ।
भुल हो तो क्षमा करना ।।
सदमार्ग चलूं में पद भ्रष्ट न होने देना ।
थाम लेना हाथ मेरा जो कुसंगति हो तब ।।
जब जब फंसे ये गहरे सागर मैं ।
तू ही पार कराना बन पतवार ।।
नादान ये मन चंचल 
मोह माया के फंदे फंसा ।
उलझ गया तू ही सुलझा ।।
अटका ये सिक्को की खनक मैं तू एक तू ही निकल ।
कान मेरे बजते मेरा मेरा में के जंजाल मैं ।। निकाल तू ही दया कर
पार मेरी नैया कर ।


वर्षा उपाध्याय,खंडवा.

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2 Comments

रचयिता,,,, सृष्टि,,, भूल,,, गहरे सागर में न कि मैं,,,, खनक में न कि मैं,,, मय के जंजाल में,,, होगा,,, आदि शब्द सही करें जी

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खूबसूरत भाव

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