बचपन
नमन मंच
मेरे जज्बात,
बचपन
चुन्नु मुन्नु सुनो वो सुनहरे बचपन की कहाँनी।
क्या लड़कपन था क्या तो मासूमियत थी।।
देख आज का बचपन बच्चों का।
परिहास करता मेरा बचपन।।
खेल शाही थे दिन भर भागमभाग
थे करते।
सुखी रोटी संग घी चुपड़ चुपड़ खाते मस्त रहते थे।।
यारों संग गिल्ली डंडा खेलते घुमा डंडा गिल्ली घूम ढूँढने वाला नाम को रोता।
निकलो निकलो बंध द्वार से हाथ से छोड़ो डिब्बे की दुनिया के ।।
फैसबूक व्हात्सप् की दुनिया सिवा
अंधेरे के कुछ नही।
बाहर भी है यारी यारों की दुनिया।।
अंटि उंगलियों पर शर्त लगा लगा नाच नचाते हार कर भी जीत यारों संग यारी जीत जाती।
वो छुप्पम छुपाई खेल घंटों खेलते।।
प्यारा प्यारा सुनहरा था हमारा बचपन।
नही कोई तकनीक ने जकड़ा था।।
पतंग बाजी पेज लड़ाई ये काटा वो काटा।
न कोई आज सी जकड़न।।
धूप से तो हमारी यारी थी।
बस साथ यारों का हो तपिश भी शीतल लगती थी।
वर्षा उपाध्याय
खंडवा, एम. पी.
ऋषभ दिव्येन्द्र
11-Apr-2023 10:54 PM
बहुत ही बढ़िया 👌👌👏👏
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