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अपमान

नमन मंच
मेरी लेखनी, 


             अपमान



मत कर रे मनवा तू दूजे का अपमान। 
दे नही सकते जो किसीको मान।। 
नही अधिकार अपमान करने का। 
निज मन पूछ जो दुजा तुझ से
करे ऊँची आवाज बात ।। 
तो सब रीता रीता लगता । 
सहन नही होता पीना घुट अपमान का। 
जो निज मन न लगे भला वही ।। 
व्यवहार तू क्यो भला दूजे से करे। 
सबका अपना मान होता।। 
खुद का भी स्वाभिमान होता। 
छोड़ो वक्त पर जो गुरुर के चलते करे अपमान। 
आज हमारा कल उसका भी आयेगा।। 
निज पर मत कर इतना मान की
दुजा तुझको लगे शून्य बराबर। 
तेरे आड़े वक्त तुझको लौट के मिलेगा। 




वर्षा उपाध्याय
खंडवा, एम. पी.

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2 Comments

Gunjan Kamal

09-Apr-2023 08:19 PM

शानदार

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बहुत बढ़िया

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