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फिज़ा

नमन मंच
मेरी लेखनी, 

    

                 फिजा



फिजाओं मैं घुला जहर। 
नही अपनापन अपनों वाली कुछ बात।। 
मिट्टी मैं रहा नही सोंधापन। 
परायापन ही आता नजर बातों मैं।। 
फर्श हुए चमकीले चलने मैं लगता डर। 
बातों बातों मैं जहर उगलते लोग।। 
हर कोई लगा रहा दौड़ । 
दिमाग मैं दौड़ा रहा रफ्तार के घोड़े।। 
रुकने का लेते नही नाम। 
बस मची है होड़।। 
कोई रोक रहा कोई खींच रहा। 
कोई गिरा रहा थामने वाला हाथ आता नही नजर।। 
दूरियाँ मिटती नही गले लगाने वाला नही कोई। 
दुख संताप रोये पास जा किसके।। 
मंजिल सबकी आगे जाना।
इस मन बीच पल रही छोटी बड़ी खाई।। 
सेतु नजर आता नही जो नाप ले वो खाई।
फिजा मैं ऐसा घुला जहर । 


वर्षा उपाध्याय
खंडवा, एम. पी.

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4 Comments

VIJAY POKHARNA "यस"

16-Mar-2023 10:32 PM

👍👍

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Abhinav ji

16-Mar-2023 07:51 AM

Very nice 👌

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जी बेहतरीन प्रस्तुति।

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