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महारथी

*महारथी*

राज पाट त्याग कर चला गया महारथी।
सोच कुछ किया नहीं बहा बना भगीरथी।
चाह में उमंग की बयार दिव्य उच्चता।
जागरण बहिर्मुखी दिशा स्वतंत्र अस्मिता।

मोह मन निकल गया सहर्ष त्याग मांगता।
बिंदु सिंधु के लिए चला सदैव जागता।
बस्तियों अनेक को पिछाड़ता चला गया।
ब्रह्म भावना भरे हृदय मनुज चढ़ा गया।

स्वार्थ छोड़ कर चला नहीं विवाद में फंसा।
शांति की तलाश थी अनीति में नहीं धंसा।
गंदगी पसंद थी कभी नहीं महर्षि को।
विश्व आत्म धारणा पुकारती महर्षि को।

साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।

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2 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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Haaya meer

26-Feb-2023 04:37 PM

Nice

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