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मोह

*मोह*
मापनी 21 21 21 21 21 21 21 2

मोह को निशा न जान दिल बहार देश है।
स्नेहपूर्ण प्यार का सदेह सत्य वेश है।
प्रेम आप से हुआ नहीं पता ठिकान था।
कौन जानता कहां अमीर का विहान था?
मर रहा जवान अंग आसमान में।
साहचर्य भावना मरी श्मशान में।
किंतु देख देख कर प्रफुल्ल मन हुआ कभी।
मोहनीय मंत्र चल पड़ा मधुर इधर तभी।
लग रहा न मन समझ बिना दिदार के।
मोह लग रहा बहुत बिना विचार के।
आप से मिलन जरुर हो यही  सुकामना।
दूर मत निकट रहो बढ़ो समीप आंगना।
स्पर्श सुख अनादि से अनंत तक मिला करे।
याद आ रही प्रिये!उठो चलो हृदय भरे।
खेल कूद हो सदा थिरक थिरक मचल मचल।
ठोंक तालियां सहर्ष आसनी अदल बदल।
प्रेम का सहस्र वाण रात दिन चला करे।
मोहिनी सुगंधिता अपार कष्ट  नित हरे।

साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी

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3 Comments

Gunjan Kamal

18-Feb-2023 11:13 PM

बहुत खूब

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Muskan khan

18-Feb-2023 06:36 PM

Very nice

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Haaya meer

18-Feb-2023 06:01 PM

Nice

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