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स्वर्णमुखी छंद




स्वर्णमुखी छंद


बात किये बिन जी नहीं, कभी मानता यार।

सता रही हो याद जब, बैठे कब चुपचाप?

बिना मिले मन तड़पता, सहता रहता ताप।

यथाशीघ्र चाहत यही, होय जल्द  दीदार।


मीत मिलन संयोग अब, हो जाये साकार।

प्रियवर ही यह जिंदगी, प्रिय जीवन का अर्थ।

 मधुर भाव मोहक मिलन, बिन यह जीवन व्यर्थ।

मित्र निकटता का सदा, करना है सत्कार।


यही निवेदन मीत से, सुने सदा फरियाद ।

भावुकता की कल्पना, ले आकार विशाल।

मित्र भावना की बढ़े,अनुदिन मादक चाल।

मिलने को व्यकुल रहे, जब भी आये याद।

उभय पक्ष आतुर रहे, मिलने को हर रोज।

सदा समुन्नत भाव का, खिलता रहे सरोज।




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1 Comments

Muskan khan

11-Feb-2023 01:15 AM

Nice

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