रात जो चैट में गंवाते हैं

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-------- ग़ज़ल --------   रात जो चैट में गंवाते हैं,  वो दिवाने ही दिन में सोते हैं!  हाँ ये दस्तूर है ज़माने का,  काटते हैं वही जो बोते हैं! बैठे रहते हैं ...

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