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शीर्षक-कर्म बिना निरर्थक है इंसान हे इंसान! क्यों डगमगाते तेरे कदम, ना सोच तू कर निरंतर कर कर्म, फिर क्यों करता चिंतन, जीवन में अपना एक नई डगर, हर मुकाम में ...
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