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नहीं मशग़ूल मैं उन सारे नज़ारों में.. जो है भरा पड़ा तारों के हज़ारों में..... है फ़रियाद कभी तुझे टूटता देखूंँ.... पूरी होती मुराद मैं अपनी देखूंँ.... लफ़्ज़ कुछ बिखेर देता ...