शुतुरमुर्ग का किस्सा

91 भाग

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वह छोटा-सा खत मेरी उँगलियों से फिसलकर हथेली में जा पहुँचा है और इतनी तेजी से मुट्ठी बंध गई है कि खोले नहीं खुल रही है, मैं कुरसी पर कहीं भी ...

अध्याय

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