1 भाग
394 बार पढा गया
18 पसंद किया गया
रिश्तों में बंधे परिंदों आज कुुछ अजीव सा मंजर देखा मैंने, रिश्तों में बंधे परिंदों को आजाद होने के ख्वाव बुनते देखा मैंने । साथ में, ...
Don't have a profile? Create