लिप्सा-समरांगण ( महाभारत आधारित उपन्यास श्रृंखला )

3 भाग

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' अद्भुत! अनुपम! अहा! क्या यौवन था! क्या सौंदर्य था! ऐसा लगता था मानों प्रकृति साक्षात‌ मानवी का रूप धरकर मेरे सम्मुख आ गई है!\'  गंगा नदी के तट पर बैठी ...

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