महज़ एक बूंद हैं ज़िन्दगी.. ग़ज़ल

1 भाग

280 बार पढा गया

23 पसंद किया गया

2 12    212   212   मिल गईं हैं तों  खोना नहींं, बे वज़ह  यूं  हीं  रोना नहीं। महज़ एक  बूंद हैं ज़िन्दगी, अश्कों में  हीं  बहाना नहीं। हैं गुनाहों में  लज्ज़त ...

×